आपने कभी अपने घर का छेत्र नापा है अपने हाथों से? क्या बोले - नहीं!!! हमको तो यह सौभाग्य २२ मार्च से ऐसा प्राप्त हुआ है की छेत्रफल निकालने और हवा के दवाब मापने की हर इकाई कंठस्थ हो गयी है| बिस्तर के नीचे पड़े उस पन्ने को निकालने के लिए कितनी डिग्री से झुकना होगा या फिर दाएं हाथ को किस गति चलाकर हवा को किस गति से विस्थापित करना होगा कि पूरे घर में पोछा १५ मिनट में लग जाए? काश! झाड़ू और पोछा जैसे वैज्ञानिक यन्त्र बचपने में मिल गए होते तो अर्दवार्षिक और वार्षिक परीक्षा परिणाम में गणित और भौतिक विज्ञानं की पंक्ति में हर बार लाल रंग से विशेष उल्लेख तो न होता|
इसी दौरान यह भी समझ आया कि हमारे घर की छत की ऊंचाई ९.५ फीट है और हमारी लम्बाई ५.५ फीट; ऐसे में जो ४ फीट का फासला बचता है उसे भरने के लिए डाइनिंग टेबल या सीढ़ी का प्रयोग किया जाना चाहिए| चाहिए शब्द को ज़रा ज़ोर दे कर पढियेगा और समझियेगा जैसे आपको प्रतिदिन सुनाई देता है| मैं इसलिए आपको आसानी से समझा पा रहा हूँ क्युकी वह ८.७५ फीट पर लटका पंखा या ९.२५ फीट पर लटका पर्दा या फिर ८ फ़ीट की ऊंचाई तक लटकता झूमर पता नहीं क्यों आजकल हर हफ्ते धूल लपेट लेते है| हम तो देख के अनदेखा करने में महारत रखते है पर घरवालों ने तो जैसे धूल और कालिख खोज लेने की प्रतियोगिता चलाई हुई है, और उसका परिणाम - हम जमीन पर कम और हवा में ज़्यादा वर्क फॉर होम करते दिखते है|
हे प्रभु, इस लॉकडाउन रुपी कारागार में डालने से पहले अनार, हरा नारियल और अनन्नास जैसे फल और कटहल जैसी सब्ज़ी तो लॉकडाउन करा देते या फिर बिना छीले ही खाना सिखा देते| क्या समय आया है कि केला, संतरा और सेब जैसे सरल फल तो परिवार वालों ने खाना ही बंद कर दिये है और रोज-रोज इन नायाब फलों को छीलने के चक्कर में हमारे हाथ की रक्त धमनियों में रक्तचाप बढ़ गया है तथा कलाईयों की मांसपेशियाँ गामा पहलवान जैसी उभर आयी है| भला हो मेथी-बथुए का जिन्होंने गर्मी में आना बंद कर दिया वर्ना …|
अरे हाँ - कढाई पनीर में प्याज़ की एक-एक परत उतार कर और बराबर वर्गाकार टुकड़ों में काटकर डालने वाली विधि बताने वाले ख़ानसामे का अगर आपको पता चले तो ज़रूर बताइयेगा| काफी उधार चुकता करना है उसका| प्यार तो रोज दलभुना काफ़ी और जलेबी बनाने वालों पर भी भर-भर के आ रहा है पर क्या करें, हमारी संस्कारित भाषा में सम्मान देने हेतु उपयुक्त शब्द अभी तक आविष्कारित नहीं हुए|
ढाई जनो के परिवार में हर ४ घंटे में २५० मिलीलीटर के १० गिलास झूठे कैसे हो जाते है यह पहेली तो बच्चे के गणित के मास्टर साहेब भी न सुलझा पाए| जब भी रसोई को निहारो तो झूठे बर्तन रखने का सोख्ता हमको अपने ऊपर से वजन कम करने की मनुहार लगाता मिलता है| ये अलादीन की सुराही जैसे गिलास और प्यायु बनाने की किसने और क्यों सोची? साफ़ करना तो दूर, सोच के ही पसीना आ जाता है कि चोंच के अंदर जूना पहुंचायें तो पहुंचायें कैसे? और अगर चोंच के अंदर चूक गए तो -
"तुमसे एक काम भी ठीक से नहीं होता" वाला तीर बर्तन की चोंच से ज़्यादा तीव्रता से घायल करता है|
बाकी, ये बास्केट - वो बास्केट के चक्कर में जो हम बास्केटबाल बने हुए है उसका तो कहना ही क्या! सामान आये तो मुसीबत न आये तो मुसीबत। भाई, कोई जल्दी से एक सबकी दर और गुणबत्ता मापने की एप्प बना के हमारी नैय्या पार लगाओ वर्ना हमारा आने वाले दिनों में क्या हश्र होगा यह तो हमें ही ज्ञात है।।
ओह, क्या कहा - आपकी स्तिथि भी हमारे जैसी ही है! तब ठीक है|
पधारिये, अपनाइये और साझा कीजिये!
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