बुधवार, 8 अप्रैल 2020

हो क्या रहा है?




भोर सवेरे फड़-फड़ की आवाज़ सुनके नयनो के किवाड़ जब मुश्किल से खोले तो ज्ञात हुआ कि कबूतर महाशय हमारी खुली खिड़की को भेदते हुए अंदर पधार चुके हैं और पंखे  पर बैठ कर अठखेलियाँ कर रहे हैं| हमने हाथ- पैर और शरीर उठाने की भरपूर चेष्ठा की पर उठ न सके| लगता इस वर्क फ्रॉम होम में बिस्तर और सोफ़े पर पड़े-पड़े काम करने के चलते रिवर्स डार्विनवाद सत्य हो गया है और अब जल्द ही हम इंसान अपनी-अपनी पूँछ लिए चार पायों पर चलते या जमीन पर रेंगते हुए दिखेंगे|

कहाँ पहले गाड़ियों के सुरीले हॉर्न और एक  दूसरे के साथ पार्किंग को लेके मधुर शब्दों के आदान -प्रदान से सवेरा होता था, पर आजकल सवेरे आँख खुलती ही है कबूतर, चील, तीतर, बटेर, गौरैया, बया, कोयल, कौवों और कठफोड़वा के दिल दहलाने वाले कोहराम से| इन पंख वाले परजीवियों ने सारा दिन फड़फड़ा कर हमारे जीवन में जैसे आतंक सा मचा दिया है| इन्होने सामने के हमारे प्लाट, वीरान अधबने पड़े फ्लैट्स और पेड़ों पर भी  कब्ज़ा कर मारा है | इतने तक होता तब भी ठीक था, पर यह तो अब घर के आँगन, बालकनी, बरामदा, पंखा एवं  एसी सब जगह घोंसलें बनाकर और अपनी आबादी बढ़ाकर हम इंसानों को ही नेस्तनाबूद  करने पर तुल गए है |

अति तो तब हो गयी, जब हमारे द्वारा अस्तित्वहीन की गयीं रंग बिरंगी तितलियाँ मुहल्ले में वापस आके हमको मुंह चिढ़ाने लगी| चार पैर वाला मोती, उसकी छत्तीस के आँकड़े वाली दोस्त किटी और किटी का जानी दुश्मन मूषक सब एक ही गैंग में शामिल होकर हमारे खिलाफ ही मोर्चा खोल दिए है और हमारी शिला समान स्थिर लाखों रुपयों की गाड़ियों को  सिर्फ खरोंच मार मार कर चोटिल ही नहीं कर रहे बल्कि गाडी की नीचे की अपनी अस्थायी कैंपिंग को अब स्थायी कब्ज़ा का स्वरुप देने में लग गए हैं| बालकनी से कभी कुछ कहने की कोशिश भी करो तो अपने चौखटे पर खीसें निपोर के हमको ही आईना दिखा देते है| 

चौड़ी-चौड़ी सड़के और फ्लाईओवर यह सोच के बनवाये थे कि जब जहाँ मन करेगा अपनी गाड़ियां सरपट दौड़ायेंगे, बीच सड़क पार्क करेंगे और जहाँ अच्छा लगेगा वहीं दुकान लगा देंगे, पर क्या पता था कि वो सपना इतनी जल्दी चकनाचूर हो जाएगा और आज उन्ही चमचमाती सडको पर नील गाय, तेंदुआ, बारहसिंगा या गैंडा कब्ज़ा करके हमको ही घर तक खदेड़ डालेंगे| जंगल में मोर नाचा वाली बात तो हमारे शहर और हमारी सड़क पर मोर नाचा में बदल गयी है| कितनी मुश्किल से हमने अपनी और अपनी गाड़ियों की आबादी बढ़ा कर इन सबको शहर से दूर खदेड़ा था पर सारी मेहनत पर पानी सिर्फ फिरता नहीं बहता हुआ भी नज़र आ रहा है|

जिन पेड़ों से  हम जबरदस्ती फरबरी में पतछड़ करा लेते थे इस बार वो तो हमारी सुनने से ही साफ़ मना कर रहे है और अप्रैल में आके पत्तियां बदलने के बारे में आपस में विचार विमर्श कर रहे है| रोज़ सुबह-शाम, सांय-सांय, सूं-सूं की ऐसी झन्नाटेदार हवाएं चलाते है यह पेड़ लोग, कि हमारी तो कुछ कहने सुनने की शक्ति ही विलीन हो जाती है| एक-दो बार खाद-पानी न देने या काट देने की घुड़की देने की कोशिश भी की तो यह बदचलन पेड़ अपने दोस्त बादल और बिजली को ले आये और ऐसा जम के बारिश, कड़कन और ओलों का तांडव कराया कि हमको हमारी छटी का दूध याद आ गया| पार्कों की घास जिसका हम कूद कूद कर नामोनिशाँ मिटा चुके थे वो अपनी हस्ती दुबारा कायम करके पूरा पार्क ही हरा कर चुकी है| हालात इतने बिगड़ चुके है कि यह घास और झाड़ झंकाड़ हमारे घर के अंदर ताकाझाँकी करने लगे है|

बच्चों के ख़तरनाक सवाल -"जैसे कि आसमान में कितने तारे है? आसमान नीला क्यों होता है? या फिर तारे क्यों टिमटिमाते है?" से बचने हेतु हमने बड़ी सालों की मस्शक्कत के बाद तो आकाश को धुंध से भर के मटमैला किया था| क्या पता था यह करोना आते ही हमारे सब किये धरे पर पानी फेर जाएगा और आसमान बचपन की हमारी लीपा-पोती वाली चित्रकारी की तरह बिलकुल नीला हो जाएगा| हद तो दो दिन पहले हो गयी जब जालंधर वाले बोलने लगे उनको २५० किलोमीटर दूर से हिमालय दिखने लगा| ऐसे कुछ दिन और चला तो दिल्ली वालों का हर लॉन्ग वीकेंड पर हिल स्टेशन जाने का प्लान ही चौपट हो जाएगा| और जो हाल ही में पोलुशन अवकाश शुरू कराया था उसका क्या???

सुनने में आया है गंगा और यमुना ने भी अपने काले या मटमैले रंग छोड़ दिए है और अपने बहाव के साथ मंद मंद सौंधी बयार भी चलाने लगी है| यह शीशे जैसे सफ़ेद पीने और बिना प्रदूषण वाली हवा हमारे स्वास्थ को बिलकुल नहीं रुच रही| शुद्ध पानी से नहाने के चक्कर में त्वचा का रंग ही हल्का पड़ गया..बताइये! इतनी शुद्ध हवा और पानी मिलेगा तो हमारा तो जीवन-यापन ही दूभर हो जाएगा| ये दमे  के फुस-फुस, दाद, खाज, खुजली, गैस, हैजा और दस्त आदि की गोलियों से जो दोस्ती की थी अब उसका क्या होगा? और जो हवा-पानी शुद्दिकरण के जो मंहगे-महंगे यन्त्र जो लगाए थे अब उनको किसके मत्थे मढूं!!

हमने चलना फिरना क्या बंद किया धरती भी मनमानी पर उतर आयी है और अपने कम्पन कम कर दिए हैं| जो सालों से सुनामी, भूकंप, भूस्खलन और हिमस्खलन देखते और अनुभव करते आये है अब उस बेहतरीन अनुभव का क्या होगा? धरती तो हमारी माँ है ऐसे कैसे कर सकती है अपने अपने बच्चों के साथ!!!




पधारिये, अपनाइये और साझा कीजिये!  https://neverserioussanjay.blogspot.com/









3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

wah! aisa laga ki kisse ne pichle jeevan ka chitran es janam mein kara diya ho. bhai aap ka lekh CBSE mein janan chahiye ......kuch ghisee pitee rachnaoun se zyada moolywan hai.

sari History National Geographic Animalkingdom Gyan Bharti channel aur kaksha ka sangam hai ..------ ek sheershak es rachna ke liye mere taraf se "prachin kaal ka anuphav vartman mein"

Sanjayneverserious ने कहा…


उत्त्साहवर्धन के लिए कोटि कोटि नमन, बेनामी जी! सुझाया शीर्षक बहुत ही सटीक है! :)

बेनामी ने कहा…

एकदम सटीक साफ चित्रण किया है आपने तो, कुछ टिप्पणी स्कूल के ऑनलाइन चल रही क्लासेज़ पे भी करें।।