शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

टॉमी की अपील





सोसाइटी के प्रबुद्ध नागरिकों,

मैं टॉमी (जेंडर जज करने की आदत तो गयी नहीं आपकी ३७७ के जाने बाद भी), आपकी ही सोसाइटी में रहने वाला एक चार पैर वाला प्राणी| आप लोग बड़े बड़े मुद्दों का व्हाट्सप्प पर या कमिटी बना बना के चुटकी में समाधान निकल देते हो तो सोचा आज आपका ध्यान अपनी समस्याओं  की ओर भी आकर्षित किया जाए|

विगत कई वर्षों से आपके द्वारा मुझ पर लगाए जा रहे तरह तरह के आरोपों से बहुत आहत हूँ| हमारी  कुकुर कमिटी ने घंटों मंत्रणा की और कई बार आर सी एम और जी बी एम भी बुलाई परन्तु परिणाम आपके जैसा ही निकला| इसीलिए आज बाहरी सहायता के लिए आपको याद किया है|

हर सुबह या शाम आपमें से ही कोई न कोई मेरे द्वारा किये नित्य कार्य की तस्वीर भेज देता है या कोई भद्दी टिप्पड़ी, फिर आप घंटो उसी  बात पर विवाद करते रहते है| मेरा मेरी प्राइवेसी पर आपकी तरह कोई अधिकार है या नहीं? इतनी ही समस्या है तो आप अपना और मेरा डी एन ए मिलान कर लो (अपना बच्चा जो बोलते हो ) या ए आई और मशीन लर्निंग के ज़रिये समस्या का निस्तारण कर लो वैसे भी हर समस्या का हल आजकल तुम्हारे पास बायोटेक या ए आई ही है | अगर कुछ नहीं कर  सकते तो टॉमी रोबोट ले आओ| मुझसे अब यह रोज़ रोज़ की चिक चिक और बर्दाश्त नहीं होती|

मैं तो समय से सोता और उठता हूँ, रात में जाग जाग के आपके कहने पर आपके पडोसी की नींद भी हराम करता हूँ पर पता नहीं क्यों आप अपना टाइम मेरे हिसाब से कभी एडजस्ट ही न कर पाए| रात को देर से सोते हो फिर सुबह टाइम से उठ नहीं पाते या फिर जो भैया आपने मेरी सेवा में लगाए है उनका टाइम  मैनेजमेंट से दूर दूर का नाता ही नहीं है, तो आप मुझे क्यों ज़िम्मेदार मानते हो की मैं आपको ज़ोर से नीचे भगाता हूँ| जीने से जाने की ज़िद भी करता हूँ लेकिन आपका आलस मुझे लिफ्ट से जाने और उसको गन्दा करने पर मजबूर कर देता है| मुझे और मेरे साथ न भाग पाने के कारण आप मेरी रस्सी छोड़ देते हो और न चाहते हुए भी मैं आपके समाज के किसी नागरिक पर अपनी खुन्नस निकाल लेता हूँ| कुछ करिये अपने स्टेमिना का...प्लीज़ |

आप मुझे अपने बच्चे के जैसे घर पर रखते हो, कई लोग तो मुझे अपने बच्चों से भी ज़्यादा प्यार करते हैं और कईओ ने तो हमको ही बच्चा मान के देश की फॅमिली प्लानिंग में बहुत बड़ा योगदान दिया है - तो फिर आप इंसानी बच्चो के जैसे हमको पॉटी ट्रेनिंग दिलाकर अपने घर की मंहगी वाली पॉटी सीट पर हमको बैठने का सौभाग्य क्यों नहीं प्रदान करते? जब आपके द्वारा सिखाये शब्द और करतब सीख लिए तो यह तो छोटी सी विधा है| ऐसा करने से कम से कम, आपके सह निवासी जो आपको रोज कोसते है वो तो बंद कर देंगे!

इकॉनमी डाउन है और नौकरियां जा रही है तो क्या मेरा बिस्कुट और पेडीग्री का खरीदना और खाना रोक दोगे?जब देखो बोलते रहते हो कि अपना आज का देख लो पड़ोसी का वेस्ट सग्गरेगेट करके| अरे भाई समझो, जब हम पौष्टिक खाएंगे तभी तो इकॉनमी और हमारे पेट को स्टिमुलस मिलेगा और आपको सोसाइटी से बाहर तक मेरे साथ आराम से चल कर जाने का मौका| 

पहले मैं और मेरा परिवार मज़े से जंगल में रहते थे, फिर आप लोगों ने खाली जगह पर अपनी कोठियां बनायीं और मुझे सुरक्षा के लिए रखा पर अब न जाने क्या हुआ आपने सब जंगल काट के यह फ्लैट नुमा कोठरियां बना दी और मुझसे बोलते हो कि अब  इनमे रहो वह भी अपने परिवार के बिना| माना की इस टिंडर के ज़माने में आपका राइट स्वाइप हो नहीं रहा और आपका इमोशनल इम्बैलेंस अपने चरम पर है पर इसका मतलब यह तो नहीं की आप मुझे मेरी फॅमिली से अलग करके मेरा ही  मेन्टल और इमोशनल ब्रेकडाउन कर डालें| 

हमारे समाज में भेद भाव  भी आपकी ही देन हैं, पहले हम सब अलग अलग देशों में जलवायु के हिसाब से अपना ठिकाना बनाते थे पर आपके इस सेल्फी,  शेयरिंग और लाइक्स के नशे ने कहीं से उठा के कहीं ला पटका है| अपनी फोटो १० फ़िल्टर के बाद भी सही नहीं होती तो मेरी लगा के अपनी फोल्लोविंग बढ़ाने की कोशिश करते हो| 

आपके  लिए तो मैं बस एक आइस-ब्रेकर आइटम बन कर रह गया हूँ| जिनसे मिलने और बात करने की आपकी खुद तो हिम्मत होती नहीं उनसे "अअअ सो क्यूट" वाला कमेंट पाने के लिए ही तो मुझे घर ले आये| सच्ची मानो- होना आपका उस कमेंट से भी कुछ नहीं सो अच्छा होगा आप अपनी दुनिया में रहो और मैं अपनी|

भौं भौं भौं| सॉरी फॉर लॉन्ग रीड। … यही कहते है न तुम्हारी भाषा में|






बुधवार, 21 अगस्त 2019

नया युग आने वाला है!!!




"कलयुग जाने वाला है और सतयुग आने वाला है" गुरु जी ने हाल में ही गायतुंडे सर, सरताज सर और वात्स्या मेम को इस सच्चाई से अबगत कराया है| जैसे ही मुझे इस बात की भनक पड़ी तो सोचा सभी कार्यछेत्र के साथियों को भी आगाह कर दूँ, आखिर आपके लिए मेरी भी तो कोई जिम्मेदारी बनती है है न| 

श्रद्धेय गुरु  जी ने अपने ग्रन्थ में आड़ी टेढ़ी लकीरों और हाथ के छापों के जरिये हमको भविष्य में होने वाली घटनाओ और परिवर्तनों से दो चार होने के रहस्य बहुत ही सरलता से बताये है| जो मैं समझ पाया वो आपको भी परोस रहा हूँ| 

इस युग में बंजर होती धरती और बढ़ता प्रदूषण हम सब को तैयार कर रहा है कि हम नए ज़माने में पेड़ पौधों पर अपनी निर्भरता कम करें और गऊ माता और पीपल के पेड़ से प्रेरणा लेकर कार्बोन डाई ऑक्साइड से साँसे लेना सीखें| आप लिख लीजिये कुछ ही दिनों में नौकरी के विज्ञापनों में  कार्बोन डाई ऑक्साइड से सांस लेने वालों को बहुत प्राथमिकता मिलने वाली है| एयर प्यूरीफायर और इस युग के वर्कर्स और कार्यालय जो ऑक्सीजन पर काम चलाते है उन पर नये युग में विभन्न गंभीर धाराओं के अंतर्गत कार्यवाई की जा सकती है| 

सतयुग में बॉस एम्प्लोयी जैसी कोई रिलेशनशिप नहीं रहेगी सब सामान होंगे और "अहम् ब्रम्हास्मि" का मन्त्र सबको एक सामान दर्जा और ऊर्जा प्रदान करेगा | कोई भूख से नहीं तड़पेगा क्युकी गुरु जी द्वारा आविष्कारित गोली सबको भूख प्यास से निवृत कर देगी| और जब पेट में भूख की आग नहीं होगी तो इंसान काम करने या न करने के लिए पूर्णता स्वतंत्र होगा | हाँ इससे यह ज़रूर हो सकता है की फ एंड बी कम्पनीज को कुछ नया ही काम सोचना पड़े | 

नए युग में कुछ भी गलत या सही नहीं होगा तथा भाषा पर कोई रोक टोक नहीं होगी, सब एक दूसरे को उच्च श्रेणी के उदबोधनो एवं विशेषणों से बुला सकेंगे | संस्कार और सदाचार जैसे शब्दों की परिभाषा में आमूल चूल प्रतिवर्तन निश्चित है  | कार्य संभंधित पत्राचार और इन्टरपेर्सनल रिलेशन्स में भी नए शब्दों और वाक्यों का प्रयोग आम बात होगी| नयी व्याकरण सिखाने के लिए अनेकों अनेक अध्यापकों की ज़रूरत पड़ने वाली है| 

रिश्ते नाते, समाज, विश्व, यारी दोस्ती व रोजी रोटी जैसे बोझों का विनाश होना बहुत ही आवश्यक है, "अहम् ब्रम्हास्मि" के गुरुमंत्र को पूर्णता अंगीकार करने के लिए |  इस गूढ़ अर्थ को अनगिनत लोगों ने समझ कर अपनी दिनचर्या में शामिल भी कर लिया है तभी तो एक दूसरे का गला काटने पर तुले हैं| आखिर सतयुग में जाने की जल्दी सबको है| मैं तो रेडी हूँ और आप? 


शनिवार, 2 मार्च 2019

व्यावसायिक यात्रा

दोस्तों हाज़िर हूँ पूरे ८ सालों बाद अपनी नयी पोस्ट लेके!!!

यह श्रृंखला हम हिन्दुस्तानियों की कार्य सम्बंधित विदेश यात्राओं  पर आधारित है| 

सर्दी की पैकिंग : हमारे घर वाले, दोस्त और जानकार भूगोल में इतने पारंगत होते है कि हमारे देश से बहार जाने की बात सुन कर ही हमको वेदर चैनल की तरह दुनिया के किसी भी कोने में भयंकर सर्दी होने का न सिर्फ आभास कराते हैं बल्कि हमको मनवा भी देते हैं| परिणाम यह होता है की २३ किलो का बैगेज अलाउंस ओवर वेट की केटेगरी में आ जाता हैं और हम एयरपोर्ट पर अकेले ऐसे प्राणी प्रदर्शित होते है जो ३-३ बैग लिए दिख रहे रहे होते है और फिर भी यह कन्फर्म नहीं होता कि कुछ छूटा तो नहीं| और विदेश में सर्दी का आलम यह होता है कि आप निक्कर और बनियान में ही सर्दी में भी गर्मी का अहसास करते हो (भला हो उन अंडरवियर और बनियान बनाने वालो का )| उफ़ हमारे पहुँचते ही ग्लोबल वार्मिंग आ गयी | 

घर का खाना : हमको तो पैदा होते ही पता होता है कि सिर्फ भारतीय खाना ही सात्विक और स्वास्थयप्रद होता है बाकी सारी दुनिया के लोग तो बस जंक फ़ूड खा खा कर मोटे हो रहे है | हमारे पूरी, परांठे, पकोड़ी, कचौड़ी, लड्डू, अचार, खाकडे, फाफड़े, नमकीन में ही तो सिर्फ परिवार का प्यार और सेहत होती है.....वैसे हल्दीराम, ऍम. टी. आर. और आई .टी.सी भी तो आजकल हमारे परिवार वाले ही तो हैं | इसी प्यार और सेहत को समेटे होता है हमारा एक पूरा २३ किलो का बैग | बनता है भाई! अब १५ दिन के ट्रेवल में हम अपनी सेहत से खिलवाड़ थोड़े कर सकते है विदेशी खाना खाके| 

असाधारण आवभगत : अथिति देवो भव: का पूर्ण अहसास तो हमको विदेश आकर ही पता चलता है जहाँ पर हमारी पुरज़ोर आवभगत की आदत का बदला हिंदुस्तानी देवो भव: के रूप में पूर्णतया सूद के साथ वापस  किया जाता है| आवभगत का जनाब आलम यह है कि हमारे लिए पूरी-पूरी हिंदुस्तानी आदमी देखने वाली मशीनें लगा दी है इन विदेशियों ने एयरपोर्ट्स पर | ज़रूर ये लोग हमारे अंदर छुपा हुआ ज्ञान और सेहत का कोष स्कैन करके चुरा रहे है! तभी तो .... हमको इस मशीन से भला न निकाले यह तो हो ही नहीं सकता!!!

हमारे वी. आई. पी. आवभगत में कोई कमी न रह जाए इसीलिए हमारे ३-३ बस्तों को भी पूरी तब्बजो दी जाती है| इसको आप सम्मान और स्नेह की इन्तेहााँ ही कहेंगे कि हमारी पाकशैली समझने के लिए पूरी की पूरी  यंत्रों और विद्वानो की पूरी टोली लगा दी जाती है | हर बार यह बेचारे हमारी पाककला को लेकर इतने विस्मित हो जाते है कि सब सामान हमसे मांग लेते है और अपने पास रख लेते है आगे के अनुसन्धान के लिए | अब हम इनको कैसे समझाएं कि.... रहने ही देते है यह लोग न समझ पाएंगे हमको | 

इस बिग डाटा और आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस  के ज़माने से दशकों पहले ही, हमने अपने विदेश यात्रा पर आये हुए हिंदुस्तानी होने के सूचक दुनिया को थमा दिए थे|  कुछ वैज्ञानिक तथ्य प्रस्तुत है :

१. आप किसी व्यावसायिक मीटिंग में किसी को अगर "यस, वी कैन दू थिस ", "यस, वी हैव डन इट", "वी कैन मैनेज सच बिग एंड काम्प्लेक्स प्रोजेक्ट्स विथ आवर प्रोवेन प्रोसेसेस" जैसे भारी भरकम सांत्वना दायी वाक्यों का प्रयोग करते देखें तो दो पल भी न सोचिये, यह हम ही है| अब वह अलग बात है कि सब प्रोजेक्ट्स में प्रोवेन प्रोसेसेज में बस थोड़ी कमी रह जाती है, क्या भाई, हम हिंदुस्तानी इंसान नहीं है?

२. अगर कोई काम के वक़्त भी हर बिल्डिंग, मोन्यूमेंट, ट्रैन और  बस में सेल्फी लेता दिखे तो भाई पहचान लेना हमको, आखिर व्हाट्सप्प, इंस्टा, एफबी पर भी तो बताना होता है न सबको कि हम विदेश यात्रा पर हैं | 

३. अगर कोई दोपहर के भोजन में चमकता हुआ लाल या हरा एप्पल और बड़ा सा केला खाता दिखे तो समझ जाइये हम विदेश यात्रा  पर हैं |  अब होटल में सुबह के नाश्ते से दोपहर के भोजन का भी काम हो जाए तो बुराई क्या है, बताइये? एक, दो फल बस ज़्यादा ही तो रखे थे लैपटॉप बैग में! वैसे फ्लेवर्ड दही, मफिन, जैम-ब्रेड वगैरह भी कई बार पता नहीं क्यों बैग में चले ही जाते है? 

४. होटल का कमरा, बस्ता  या सार्वजनिक स्थान जब तेल, मसाला, हल्दी, लहसुन, प्याज  की खुसबू से ज़ोर शोर से वातावरण को सुगन्धित करें को बस समझ जाओ हम यात्रा पर है| 

५. कैज़ुअल भेषभूषा अपनाने वाले देशों में भी जब कोई सर्दी का या शादी वाला सूट और टाई लगा के निकले तो समझ जाओ कि वी हिंदुस्तानीस मीन बिज़नेस!!

६. डाउनटाउन में अगर कोई इधर उधर भटकती या जी. पी. यस. को पीती हुई कोई आत्मा दिखे तो दो बार सोचियेगा भी मत क्युकी हम या तो इंडियन रेस्ट्रॉन्ट की तलाश में हैं  या फिर कवेयन्स के पैसे जोड़ रहे है एन्ड ऑफ़ बिज़नेस ट्रिप ख़रीददारी के लिए | 

७. शॉपिंग के वक़्त या टिप देते वक़्त अगर कोई मेन्टल मैथ्स (यह कौन करता है आजकल??)… माने फ़ोन पर कैलकुलेटर का इस्तेमाल करता दिखे तो समझ लो हम करेंसी कन्वर्शन कर रहे है| कॉक्स एंड किंग्स क्या ही हराएगा हमको इस महारत में| 

८. टैक्सी, ट्रैन, रेस्ट्रॉन्ट या किसी भी दूकान पर अगर कोई एक्स्ट्रा या खाली बिल्स मांग रहा हो तो समझ जाओ कि वह हम ही है! आखिर कार्यालय में वापस आकर खर्चे का हिसाब भी तो देना होता है | 

९. लौटते वक़्त अगर हमारे बस्ते में ड्यूटी फ्री की दो बोतल, एक नया लैपटॉप, फ़ोन, गेमिंग स्टेशन या डी. यस. एल. आर. न मिले तो हमारा नाम बदल दीजिये| आखिर ट्रिप से बची विदेशी मुद्रा हम देश थोड़े ले जायेंगे, देशभक्ति भी कोई चीज़ होती है|  

१०. वापस आने के बाद अगर २ महीने बाद तक हमसे विदेशी शैम्पू, बॉडी लोशन और  कंडीशनर की महक आये तो भाई समझ लेना तुम्हारा भाई अभी हाल ही में व्यावसायिक विदेश यात्रा करके लौटा है| 









सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

मैं और मेरी नौकरी - पार्ट १७

रोकेट सिंह देखी पिछले दिनों - देखते ही लग गया की यह तो अपनी ही कहानी है॥ तो दोस्तों आईये आज अपने ही धंधे की तीन पांच की जाए॥

किसी संत ने ठीक ही कहा है की अगर आपको कुछ न आता हो, नंबर अच्छे न आये हो या अपने ऊपर भरोसा न हो तो आपको सोचना कुछ नहीं है बस सेल्स पकड़ लीजिये॥ और विडावना यह देखिये कि हर कार्यालय बस सेल्स सेल्स ही करता रहता है..यानि इस लाइन में नौकरी कि तो कमी नहीं है॥ अब अगर आप किसी और लाइन में हो और खली बैठे हो तो सोचिये मत सेल्स में कूद पड़िए..करना बस इतना है ...मार्केट विसिट पर जाईये और पूरा दिन किसी हप्पेनिंग जोइंट पर बितायिये ...बस शाम को ऑफिस आके रिपोर्ट बनाना मत भूलना...वोह भी १०- १२ विसिटिंग कार्ड्स के साथ में॥ मैं तो माल में खड़ा होके बस लोगो के विसिटिंग कार्ड्स ही इक्कट्ठा करता रहता था...इस तरीके आप कम से कम २-३ महीने तो आराम से तन्क्वाह पा ही सकते है॥

सेल्स वाले कंपनी के आँख के तारे होते है जब तक कंपनी के लिए पैसे लाते है॥ परन्तु अगर इसका कहीं उल्टा हो जाए तब तो भैया बहार का रास्ता दिखाने में भी कंपनी ज़रा देर नहीं लगाती॥ लेकिन डरने कि कोई बात नहीं ...जो पिछली कंपनी का धंधा है उसको सब अपना लाया हुआ बोल के नयी कंपनी में नौकरी तो आराम से मिल ही जायेगी॥ केस को और सच्चा बनाने के लिए पुरानी कंपनी का डाटाबेस तो कंपनी में जाते ही अंटी कर लेना चाहिए॥

सेल्समैन सदा कहता है कि सेल्स एक कला है जो सिर्फ उसे आती है और उसके उलट उसकी कंपनी हमेशा येही एस्ताब्लिश करने में लगी रहती है कि सेल्स एक विज्ञानं है॥ इसी द्वंद के चलते कितनी ही कंपनियों ने अपनी रोटी सेंक ली -सेल्स फोर्स ऑटोमेसन या सी आर ऍम जैसे टूल्स बनाके॥ इस द्वंद में भी सेल्समैन ही बाजी मारता है क्युकी जब उसके कंपनी छोड़ने के बाद कोई दूसरा जब उस केस पर काम करता है तो पता चलता है कि इस नाम क़ी कंपनी ही नहीं है और वोह जो १०० - १०० डेली मेल्स जाती थी वोह तो उस कंपनी में बिज़नस को नहीं बल्कि गर्लफ्रेंड या बॉय फ्रेंड को थी॥

जबसे यह आउट सोर्सिंग का चलन बड़ा है तब से सेल्स क़ी नौकरी भी बदल गयी है ..पहले ऑफिस ऑफिस जाके बेचना होता था अब सीट पर बैठ के सैकड़ों मील दूर बैठे लोगों को चूना लगाना होता है॥ पर यह सेल्स कोम ही ऐसी है कि बाहर वालों से ज्यादा अपने घरवालों से प्यार करती है इसीलिए आरामदायक सीट पर विराजमान होकर इन्टरनेट और फ़ोन का भरपूर उपयोग अपने अपनों से सम्बन्ध सुधारने में होता हैं॥

सेल्स का गुरु मंत्र है ..कभी भी ज्यादा मेहनत मत करो और ज्यादा बिज़नस मत लाओ...जितना ज्यादा लाओगे टारगेट्स उतने ही बढ जायेंगे॥ बस महीने में एक केस क्लोस करो फिर पूरा महिना बैठ के खाओ॥ अगर कोई धंधा इस महीने आने भी वाला हो तो उसको अगले महीने खिसका दो..भैया अगले महीने भी तो नौकरी बचानी है॥

चलो भाईया अगर अगले महीने नौकरी बची तो अपने कच्चे चिट्ठे और खोलूँगा ...तब तक .....सेल्स (आराम)