शुक्रवार, 7 नवंबर 2008

में और मेरी नौकरी -पार्ट ६

आपके फायदे के लिए आज मैं दुनिया भर में मची फिनान्सिअल त्राहि त्राहि और उसका हमारे कार्यालय पर असर का विश्लेषण करने का प्रयत्न करूंगा।

दुनिया में जब हर तरफ़ कोस्ट कटिंग हो रही है वही हमारे यहाँ दिवाली मनाई गई धूमधाम से और एक एक लड्डू खाने को भी दिया गया॥ दिवाली में हमने अपने यहाँ झालर भी लगे..अरे आपने नही देखी..अरे वही वाली जिसका ट्रेडमार्क हमारे पास है...दुराबिलिटी देखिये ...पिछले १० साल में एक भी बल्ब फुस नही हुआ...आप मोहल्लें में कहीं खड़े होहिये आपको हमारा कार्यालये अलग से दिख जायेगा। यह अनमोल डिजाइनर झालर है जिसको चलाना सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारे यहाँ के बिजलीभाई को आता है॥ ..अरे भइया कहने का मतलब यह है ..कि हमने दिवाली पर बिजली पर एक्स्ट्रा खर्च किया ...बताइए कहाँ है कोस्ट कटिंग॥

हमारे कई साथी जो सालों से शिकायत कर रहे थे कि आप हमको अलग गाड़ी से बुलाते हो इस कारन हम लोग मेल जोल नही बढ़ा पा रहे..आखिर साथियों कि सुन ही ली...अब सब लोग बस से राजी खुशी एक साथ आते है॥ अब आप हैरान होंगे ही न ..कि हम इस कठिन समय में भी कही कोस्ट कटिंग नही कर रहे बल्कि साथियों कि मांगो को और मान रहे हैं॥

ऐसी ही कुछ रोषखाने लो लेकर भी था ॥ सब साथी कह रहे थे कि आप हमें फ्री या कम कीमत पर खाना क्यों देते हो..अब कोई लंगर तो हैं नही...बड़ी मुश्किल से यह माना गया कि चलो आप लोग कुछ दे दो ..जिससे आप सबको हीन भावना न आए लेकिन ..कार्यालय के यह साफ़ कर दिया कि आधा पैसा तो हम ही देंगे, चाहे आपलोग माने या न माने॥ अब बताइए ...यह फालतू खर्च हैं के नही।

कई साथियों के बच्चों ने उनको टोका कि पापा/मम्मी आप यह रोज बिस्कुइत/ नमकीन कहाँ से लाते हो। रात में तो कोई दुकान खुली नही होती...क्या चोरी की हैं आपने॥ अब बच्चे तो बच्चे ही हैं न वोः कहाँ समझेंगे की कार्यालय मेंन यह भी फ्री मिलता हैं॥ जब यह ताने प्रतिदिन आने लगे तो साथियों ने साफ़ बोल दिया हम यह नही लेंगे फ्री के बिस्कुइत/नमकीन...अगर खाना होगा तो खरीद के लेंगे...अब एम्प्लोयीस के आगे तो मैनेजमेंट को झुकना ही पड़ता हैं न ॥

देखिये.. इस कठिन समय में भी हम कितने खुश हैं॥

बुधवार, 5 नवंबर 2008

मैं और मेरी नौकरी -पार्ट ५

आईये आज आपको अपने कार्यालय में उपयोग में आने वाले महत्पुरण शब्दों का बोध करता हूँ॥

फायर फिघ्तिंग : यह संभवता हमारे यहाँ का हर घंटे इस्तेमाल आने वाला शब्द है। फायर डिपार्टमेन्ट भी क्या इतना इस्तेमाल करता होगा। हर साथी पानी लिए आग बुझाने में ही जुटा रहता है। आफ्टर आल क्लाइंट का काम करने में आग निकलती ही इतनी है। वैसे हमने आग बुझाने का भी एक प्रोसेस बना रखा है, जिसमे पॉइंट नम्बर ४ के अनुसार ..जब भी आग लगे ..बस आग ...आग....आग चिल्लाओ और भागो...कोई न कोई तो बुझा ही देगा।

पुल : भाई यह हिन्दी वाला पुल नही बल्कि खींचने वाला पुल है। यह शब्द आपको दिन मैं अगर १०-१२ बार न सुनाई दे तो समझ लो उस दिन कुछ ठीक नही है॥ इस शब्द को सिखाने के लिए हमने प्रक्टिकाल्स भी बनाये है -आपको काम पुल करके सारे काम करने होते है ..जैसे पानी और काफी पीने के लिए ग्लास का ज़ोर लगाकर पुल करना, या फिर वाशरूम मैं तिस्सुए पेपर का पुल करना। बस एक प्रोजेक्ट समय सारणी ही पुल नही हो पाती।

आउटसोर्स : इस शब्द ने तो क्या माया जाल फैलाया हुआ है, पूरे ऑफिस में फैला है। हम शरिंग में बिश्वास करते है इसलिए जब भी काम करने का मन नही करता तो उसको दूसरे को थमा देते है और हो गई आउटसोर्सिंग। इस विधा में तो हर साथी ओल्य्म्पिक मैडल जीत सकता है॥ हो भी क्यों न हमें तो जन्म से आउटसोर्सिंग सिखाई जाती है...नाप्पी बदलवाने से लेकर करियर का डिसीजन लेने तक सब ओउत्सौर्सद है।

लेट्स discuss : बड़ा महिमामयी शब्द है यह, जब कुछ समझ न आए तो लेट्स दिस्कुस्स या फिर काम करने का दिल न करे तो लेट्स दिस्कुस्स, इतना ही नही अगर किस्सी को हड़काना हो तो भी लेट्स दिस्कुस्स॥ और इस शब्द के इस्तेमाल के लिए आपको एकांत चाहिए होता है ..सिर्फ़ आप और आपका लेट्स दिस्कुस्स का साथी॥ वैसे इस लेट्स दिस्कुस्स के परिणाम के बारे में आजतक कोई भी मैनेजमेंट गुरु कुछ बता नही पाया कि फिनाल्ली रिजल्ट क्या निकला॥

कल : अगर यह शब्द न होता तो हमारे क्लिएंट्स को आज ही कितना काम करना पड़ता इसीलिए हम हर चीज़ कल देते है जिससे उन पर बोझ न पड़े। हमें इस पर गर्व है कि हमारा हर साथी इस शब्द का भरपूर उपयोग अपने रोल में करता है।

लेट मी काम बेक तो यू : यह तो हर समस्या का निदान है ...जब कुछ समझ न आए या उत्तर न आता हो तो इस वाक्य का धल्लले के इस्तेमाल करें। किसी को तर्न्काने में भी यह बहुत काम आता है..क्युकी कब काम बेक होगा ..यह तो भगवान् ही जाने॥

आशा है आप इन शब्दों को रट लिए होंगे और तोते कि तरह इनका जाम करते होंगे...लेट मी काम बेक तो यू ऐसे ही नए शब्दों के साथ ।

मंगलवार, 4 नवंबर 2008

मैं और मेरी नौकरी -पार्ट 4

चार दिन बाद फिर से हाज़िर हूँ....हिमेश भाई की कर्जज्ज्ज़ देखी वीकएंड पर, बस उसके ही सुरूर के कारन लेट हो गया...वैसे हिमेश भाई ने क्या पिक्चर बने है ..वाह वाह....दिल खुश हो गया॥

हमारी कंपनी भी हिमेश भाई से बहुत इन्स्पिरेड है - उदहारण के लिए -जैसे हिमेश भाई consistency में बिस्वास रखते है और एक टाइप के ही गाने बनते है वैसे ही हमारी कंपनी भी एक ही टाइप के प्रोदुक्ट्स बनती है चाहे सुब्जेक्ट एरिया और औडिएंस कोई भी क्यों न हो। अब हमारी कैंटीन के खाने को ही लीजिये ...एक ही टाइप का लगेगा चाहे मेनू में कुछ भी लिखा हो और कुछ भी बना हो। ब्रांड बिल्डिंग का इससे अच्छा तरीका भला क्या हो सकता है।

अब जैसे हिमेश भाई सारे गाने ख़ुद जाते है अपनी पिक्चर के, आखिरकार एक्सपेरिएंस मत्तेर्स!! बिल्कुल उसी तरह हमारे पुराने लोग भी सारे कामों में शामिल होते है। और जैसे हिमेश भाई के गाने में एक दो कूकें कोई दूसरा नया सिंगर भी कर देता है और ट्रेन हो जाता है वैसे ही हमारे नए रेसौर्सस भी॥

हिमेश भाई की एवेरचंगिंग विग की तरह हमारे प्रोदुक्ट्स का भी बाहरी स्वरुप बहुत आसानी के बदल जाता है बगैर अंदरूनी ताम झाम को छेड़े हुए॥ जैसे हिमेश भाई अपने म्यूजिक नोट्स को इधर उधर reuse करते रहते है वैसे ही हम भी अपने कोड तो इधर उधर बही सफाई से फिट कर लेते है॥ रयूसबिलिटी इस इन थिंग ...मेरे दोस्त॥

जैसे हिमेश भाई अपनी पिक्चर में नई हेरोइन को हमेशा लाते है और प्रमोट करते है ठीक उसी तरह हम भी अपने बिल्कुल नए साथियों को नए प्रोजेक्ट्स पर लगा देते है, और उनका हौसला बदते है॥ हिमेश भाई की पिक्चर का म्यूजिक बहुत पहले आता है और मूवी ४-६ महीने बाद ठीक उसी तरह हमारी भी क्लाइंट को पर्ची तुंरत जाती है और प्रोडक्ट ४-६ महीने बाद..

शुक्रिया हिमेश भाई इतनी सारी मैनेजमेंट ज्ञान के लिए ..मैं और मेरी कंपनी आपके हार्दिक आभारी है॥

शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2008

मैं और मेरी नौकरी -पार्ट 3

हमारी कंपनी बहुत ही दूरदर्शी है, जब से दूरदर्शन पर महाभारत देखी, और विशेषता वोह अभिमन्यु का माँ के पेट में चक्रव्हूय तोड़ना सीखना; तब से ठान लिया कि जो जहाँ है उसको वही पढायेंगे बस फिर क्या था यह ट्रेनिंग कंटेंट का बिज़नस खोल लिया। कितनी समानता है अभिमन्यु कि ट्रेनिंग और हमारी ट्रेनिंग में - पढ़ तो लेते है पर दिया गया कार्य बस पूरा नही कर पाते। फिर से न आप .....अरे यह स्टुडेंट कि प्रॉब्लम है।

हम बहुत ही प्रोसेस ओरिएंतेद कंपनी है, कोई भी काम जो ऑनलाइन हो सकता है उसकी हार्ड कॉपी ज़रूर मांगते है आखिर इस इन्टरनेट का क्या भरोसा कब बंद हो जाए इसलिए हार्ड कॉपी टीओ होनी ही चाहिए...उसमे तो सिर्फ़ फटने और आग लगने का ही डर है।

हमारे प्रोसस्सेस कि तो मिसाल दुनिया में कम ही मिलती है, अब आप इस ओये पंगा मत ले (OPM) टूल को ही लीजिये, इससे क्लाइंट कभी भी यह पता नही लगा सकता कि उसके प्रोजेक्ट में चल क्या रहा है...अरे....हम क्लिएंट्स को दर्द कम देना चाहते है। सुना नही आपने ...जितना कम जानोगे उतना खुश रहोगे।

हम ओंन दा जॉब तालीम में विश्वास रखते है...कहते है इससे एक्सपेरिएंस मिलता है..तभी तो हमारे सारे साथी सीधे क्लाइंट के काम पर हाथ साफ़ करते है, इसका फायदा यह भी होता है कि क्लाइंट को भी हमारे साथियों के साथ ज्यादा वक़्त बिताने को मिलता है। अब वोह रिलेशनशिप ही क्या ..जिसमे कुछ खट पट न हो...मतलब learning।