शनिवार, 2 मार्च 2019

व्यावसायिक यात्रा

दोस्तों हाज़िर हूँ पूरे ८ सालों बाद अपनी नयी पोस्ट लेके!!!

यह श्रृंखला हम हिन्दुस्तानियों की कार्य सम्बंधित विदेश यात्राओं  पर आधारित है| 

सर्दी की पैकिंग : हमारे घर वाले, दोस्त और जानकार भूगोल में इतने पारंगत होते है कि हमारे देश से बहार जाने की बात सुन कर ही हमको वेदर चैनल की तरह दुनिया के किसी भी कोने में भयंकर सर्दी होने का न सिर्फ आभास कराते हैं बल्कि हमको मनवा भी देते हैं| परिणाम यह होता है की २३ किलो का बैगेज अलाउंस ओवर वेट की केटेगरी में आ जाता हैं और हम एयरपोर्ट पर अकेले ऐसे प्राणी प्रदर्शित होते है जो ३-३ बैग लिए दिख रहे रहे होते है और फिर भी यह कन्फर्म नहीं होता कि कुछ छूटा तो नहीं| और विदेश में सर्दी का आलम यह होता है कि आप निक्कर और बनियान में ही सर्दी में भी गर्मी का अहसास करते हो (भला हो उन अंडरवियर और बनियान बनाने वालो का )| उफ़ हमारे पहुँचते ही ग्लोबल वार्मिंग आ गयी | 

घर का खाना : हमको तो पैदा होते ही पता होता है कि सिर्फ भारतीय खाना ही सात्विक और स्वास्थयप्रद होता है बाकी सारी दुनिया के लोग तो बस जंक फ़ूड खा खा कर मोटे हो रहे है | हमारे पूरी, परांठे, पकोड़ी, कचौड़ी, लड्डू, अचार, खाकडे, फाफड़े, नमकीन में ही तो सिर्फ परिवार का प्यार और सेहत होती है.....वैसे हल्दीराम, ऍम. टी. आर. और आई .टी.सी भी तो आजकल हमारे परिवार वाले ही तो हैं | इसी प्यार और सेहत को समेटे होता है हमारा एक पूरा २३ किलो का बैग | बनता है भाई! अब १५ दिन के ट्रेवल में हम अपनी सेहत से खिलवाड़ थोड़े कर सकते है विदेशी खाना खाके| 

असाधारण आवभगत : अथिति देवो भव: का पूर्ण अहसास तो हमको विदेश आकर ही पता चलता है जहाँ पर हमारी पुरज़ोर आवभगत की आदत का बदला हिंदुस्तानी देवो भव: के रूप में पूर्णतया सूद के साथ वापस  किया जाता है| आवभगत का जनाब आलम यह है कि हमारे लिए पूरी-पूरी हिंदुस्तानी आदमी देखने वाली मशीनें लगा दी है इन विदेशियों ने एयरपोर्ट्स पर | ज़रूर ये लोग हमारे अंदर छुपा हुआ ज्ञान और सेहत का कोष स्कैन करके चुरा रहे है! तभी तो .... हमको इस मशीन से भला न निकाले यह तो हो ही नहीं सकता!!!

हमारे वी. आई. पी. आवभगत में कोई कमी न रह जाए इसीलिए हमारे ३-३ बस्तों को भी पूरी तब्बजो दी जाती है| इसको आप सम्मान और स्नेह की इन्तेहााँ ही कहेंगे कि हमारी पाकशैली समझने के लिए पूरी की पूरी  यंत्रों और विद्वानो की पूरी टोली लगा दी जाती है | हर बार यह बेचारे हमारी पाककला को लेकर इतने विस्मित हो जाते है कि सब सामान हमसे मांग लेते है और अपने पास रख लेते है आगे के अनुसन्धान के लिए | अब हम इनको कैसे समझाएं कि.... रहने ही देते है यह लोग न समझ पाएंगे हमको | 

इस बिग डाटा और आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस  के ज़माने से दशकों पहले ही, हमने अपने विदेश यात्रा पर आये हुए हिंदुस्तानी होने के सूचक दुनिया को थमा दिए थे|  कुछ वैज्ञानिक तथ्य प्रस्तुत है :

१. आप किसी व्यावसायिक मीटिंग में किसी को अगर "यस, वी कैन दू थिस ", "यस, वी हैव डन इट", "वी कैन मैनेज सच बिग एंड काम्प्लेक्स प्रोजेक्ट्स विथ आवर प्रोवेन प्रोसेसेस" जैसे भारी भरकम सांत्वना दायी वाक्यों का प्रयोग करते देखें तो दो पल भी न सोचिये, यह हम ही है| अब वह अलग बात है कि सब प्रोजेक्ट्स में प्रोवेन प्रोसेसेज में बस थोड़ी कमी रह जाती है, क्या भाई, हम हिंदुस्तानी इंसान नहीं है?

२. अगर कोई काम के वक़्त भी हर बिल्डिंग, मोन्यूमेंट, ट्रैन और  बस में सेल्फी लेता दिखे तो भाई पहचान लेना हमको, आखिर व्हाट्सप्प, इंस्टा, एफबी पर भी तो बताना होता है न सबको कि हम विदेश यात्रा पर हैं | 

३. अगर कोई दोपहर के भोजन में चमकता हुआ लाल या हरा एप्पल और बड़ा सा केला खाता दिखे तो समझ जाइये हम विदेश यात्रा  पर हैं |  अब होटल में सुबह के नाश्ते से दोपहर के भोजन का भी काम हो जाए तो बुराई क्या है, बताइये? एक, दो फल बस ज़्यादा ही तो रखे थे लैपटॉप बैग में! वैसे फ्लेवर्ड दही, मफिन, जैम-ब्रेड वगैरह भी कई बार पता नहीं क्यों बैग में चले ही जाते है? 

४. होटल का कमरा, बस्ता  या सार्वजनिक स्थान जब तेल, मसाला, हल्दी, लहसुन, प्याज  की खुसबू से ज़ोर शोर से वातावरण को सुगन्धित करें को बस समझ जाओ हम यात्रा पर है| 

५. कैज़ुअल भेषभूषा अपनाने वाले देशों में भी जब कोई सर्दी का या शादी वाला सूट और टाई लगा के निकले तो समझ जाओ कि वी हिंदुस्तानीस मीन बिज़नेस!!

६. डाउनटाउन में अगर कोई इधर उधर भटकती या जी. पी. यस. को पीती हुई कोई आत्मा दिखे तो दो बार सोचियेगा भी मत क्युकी हम या तो इंडियन रेस्ट्रॉन्ट की तलाश में हैं  या फिर कवेयन्स के पैसे जोड़ रहे है एन्ड ऑफ़ बिज़नेस ट्रिप ख़रीददारी के लिए | 

७. शॉपिंग के वक़्त या टिप देते वक़्त अगर कोई मेन्टल मैथ्स (यह कौन करता है आजकल??)… माने फ़ोन पर कैलकुलेटर का इस्तेमाल करता दिखे तो समझ लो हम करेंसी कन्वर्शन कर रहे है| कॉक्स एंड किंग्स क्या ही हराएगा हमको इस महारत में| 

८. टैक्सी, ट्रैन, रेस्ट्रॉन्ट या किसी भी दूकान पर अगर कोई एक्स्ट्रा या खाली बिल्स मांग रहा हो तो समझ जाओ कि वह हम ही है! आखिर कार्यालय में वापस आकर खर्चे का हिसाब भी तो देना होता है | 

९. लौटते वक़्त अगर हमारे बस्ते में ड्यूटी फ्री की दो बोतल, एक नया लैपटॉप, फ़ोन, गेमिंग स्टेशन या डी. यस. एल. आर. न मिले तो हमारा नाम बदल दीजिये| आखिर ट्रिप से बची विदेशी मुद्रा हम देश थोड़े ले जायेंगे, देशभक्ति भी कोई चीज़ होती है|  

१०. वापस आने के बाद अगर २ महीने बाद तक हमसे विदेशी शैम्पू, बॉडी लोशन और  कंडीशनर की महक आये तो भाई समझ लेना तुम्हारा भाई अभी हाल ही में व्यावसायिक विदेश यात्रा करके लौटा है| 









सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

मैं और मेरी नौकरी - पार्ट १७

रोकेट सिंह देखी पिछले दिनों - देखते ही लग गया की यह तो अपनी ही कहानी है॥ तो दोस्तों आईये आज अपने ही धंधे की तीन पांच की जाए॥

किसी संत ने ठीक ही कहा है की अगर आपको कुछ न आता हो, नंबर अच्छे न आये हो या अपने ऊपर भरोसा न हो तो आपको सोचना कुछ नहीं है बस सेल्स पकड़ लीजिये॥ और विडावना यह देखिये कि हर कार्यालय बस सेल्स सेल्स ही करता रहता है..यानि इस लाइन में नौकरी कि तो कमी नहीं है॥ अब अगर आप किसी और लाइन में हो और खली बैठे हो तो सोचिये मत सेल्स में कूद पड़िए..करना बस इतना है ...मार्केट विसिट पर जाईये और पूरा दिन किसी हप्पेनिंग जोइंट पर बितायिये ...बस शाम को ऑफिस आके रिपोर्ट बनाना मत भूलना...वोह भी १०- १२ विसिटिंग कार्ड्स के साथ में॥ मैं तो माल में खड़ा होके बस लोगो के विसिटिंग कार्ड्स ही इक्कट्ठा करता रहता था...इस तरीके आप कम से कम २-३ महीने तो आराम से तन्क्वाह पा ही सकते है॥

सेल्स वाले कंपनी के आँख के तारे होते है जब तक कंपनी के लिए पैसे लाते है॥ परन्तु अगर इसका कहीं उल्टा हो जाए तब तो भैया बहार का रास्ता दिखाने में भी कंपनी ज़रा देर नहीं लगाती॥ लेकिन डरने कि कोई बात नहीं ...जो पिछली कंपनी का धंधा है उसको सब अपना लाया हुआ बोल के नयी कंपनी में नौकरी तो आराम से मिल ही जायेगी॥ केस को और सच्चा बनाने के लिए पुरानी कंपनी का डाटाबेस तो कंपनी में जाते ही अंटी कर लेना चाहिए॥

सेल्समैन सदा कहता है कि सेल्स एक कला है जो सिर्फ उसे आती है और उसके उलट उसकी कंपनी हमेशा येही एस्ताब्लिश करने में लगी रहती है कि सेल्स एक विज्ञानं है॥ इसी द्वंद के चलते कितनी ही कंपनियों ने अपनी रोटी सेंक ली -सेल्स फोर्स ऑटोमेसन या सी आर ऍम जैसे टूल्स बनाके॥ इस द्वंद में भी सेल्समैन ही बाजी मारता है क्युकी जब उसके कंपनी छोड़ने के बाद कोई दूसरा जब उस केस पर काम करता है तो पता चलता है कि इस नाम क़ी कंपनी ही नहीं है और वोह जो १०० - १०० डेली मेल्स जाती थी वोह तो उस कंपनी में बिज़नस को नहीं बल्कि गर्लफ्रेंड या बॉय फ्रेंड को थी॥

जबसे यह आउट सोर्सिंग का चलन बड़ा है तब से सेल्स क़ी नौकरी भी बदल गयी है ..पहले ऑफिस ऑफिस जाके बेचना होता था अब सीट पर बैठ के सैकड़ों मील दूर बैठे लोगों को चूना लगाना होता है॥ पर यह सेल्स कोम ही ऐसी है कि बाहर वालों से ज्यादा अपने घरवालों से प्यार करती है इसीलिए आरामदायक सीट पर विराजमान होकर इन्टरनेट और फ़ोन का भरपूर उपयोग अपने अपनों से सम्बन्ध सुधारने में होता हैं॥

सेल्स का गुरु मंत्र है ..कभी भी ज्यादा मेहनत मत करो और ज्यादा बिज़नस मत लाओ...जितना ज्यादा लाओगे टारगेट्स उतने ही बढ जायेंगे॥ बस महीने में एक केस क्लोस करो फिर पूरा महिना बैठ के खाओ॥ अगर कोई धंधा इस महीने आने भी वाला हो तो उसको अगले महीने खिसका दो..भैया अगले महीने भी तो नौकरी बचानी है॥

चलो भाईया अगर अगले महीने नौकरी बची तो अपने कच्चे चिट्ठे और खोलूँगा ...तब तक .....सेल्स (आराम)

सोमवार, 6 जुलाई 2009

मैं और मेरी नौकरी -पार्ट १६

पिछले दो दिन से भोजन नही किया न घर में किसी को करने दिया इसी उम्मीद पर की सोमबार को बजट के त्यौहार में कहीं कुछ ऐसा न हो जाए जिससे हमको तीन दिन में एक बार रोटी खानी पड़े॥ सुबह से ही अपने टेक्सला के १४ इंच ब्लैक एंड व्हाइट टीवी के आगे दीदे गडा के बैठ गया इस उम्मीद पर की शायद इस बार मुझ जैसे छोटे कर्मचारियों / देहादी मजदूरों का कुछ भला हो जाए॥

खैर जैसे तैसे ११ बजा और संसंद भवन से जीवित प्रसारण आने लगा ... वित्त मंत्री पर ऐसी टकटकी लगायी (जैसी कभी प्रेमिका को भी नही लगायी थी ) इसी उम्मीद में की आज कुछ तो हाथ आएगा॥ जैसे ही भाषण शुरू हुआ तो पता चला वित्त मंत्री जी की आज नाक चल रही है ..समझ आया मेरा टीवी बार बार व्हाइट आउट क्यों हो रहा था॥
अब संसंद में तो किसी ने खायी या न खायी हो मैंने तो तुंरत सवाइएन फ्लू की दवा डकार ली ..लेता क्यों नही मंत्री जी ने लाइफ सेविंग दवाएं सस्ती जो कर दी॥ अब हम छोटे लोग आराम से बड़ी बड़ी बीमारी पाल सकते हैं॥

एल सी दी टीवी सस्ता करके और सेट टॉप बॉक्स मंहगा करके मंत्री जी ने उत्तम काम किया है, अब हम जैसे लोग रंगीन छवि बिल्कुल साफ़ साफ़ देख पाएंगे॥ अब बच्चे भी नही बिगाडेंगे क्युकी मंहगा सेट टॉप बॉक्स तो हम लगवा पाएंगे ही नही॥ हर महीने केबल वाले की शकल भी नही देखनी पड़ेगी॥

अब नैनो नही लेना सीधे बी ऍम डब्लू या मर्क ही लेंगे ..सस्ती जो हो गई है॥ सोच रहा हूँ ३-३ लाख का कृषि लोन पुरे परिवार के नाम दिलवा के ७% के व्याज पर सवारी ले ही लूँ॥ अब रानी मुखर्जी और ऐ बी किसान हो सकते है तो मैं क्यों नही॥ वैसे भी कृषि लोन वापस थोड़े करना होता है सिर्फ़ आत्महत्या ही करनी होती है॥ sunane में आया पेट्रोल की कीमत को बाज़ार निर्धारित करेगा... चलो कोई नही गाड़ी को ऑफिस में टैक्सी की जगह लगा दूँगा॥ अपना भी आना जाना हो जाएगा और कुछ आमदनी भी॥

मोबाइल लेने का दशकों से मन है .. इस बार कवर ले लेते है मोबाइल अगली बार॥ मोबाइल के साथ लगने वाली चीजे सस्ती जो हो गई है॥

मुझ बी पि अल कार्ड धारक को महती प्रसन्नता हुई जानकर की अब भूखा नही सोना पड़ेगा क्यों २५ किलो अनाज ३ रुपये प्रति किलो के हिसाब से मिलेगा॥ लेकिन सोचने की बात यह है २५ किलो अनाज रखने के लिए २०० रुपये का डिब्बा कहाँ से आयेगा॥ कोई नही खुले बाज़ार में २० रुपये प्रति किलो बेच के कुछ कमाई ही हो जायेगी॥

साल में १४० दिन काम करने वाला और १०० रुपये प्रति दिन पाने वाला मैं डायरेक्ट और इन-डायरेक्ट टेक्स को तो समझ नही पाया की उसका मुझ पर क्या प्रभाव पड़ेगा परन्तु ऊपर दिए गए सपनो अर्थात फ्रींज बेनेफिट से आज मेरा पेट अपने आप भर गया॥






बुधवार, 24 जून 2009

मैं और मेरी नौकरी -पार्ट १५

दोस्तों हम सबका मन उस सीईओ वाली कुर्सी पर बैठने का करता ही है॥ वोह अलग बात है कि हममें वोह गुन पाये जाते हों या न...अब देखने से तो येही लगता ही है कि यह कार्य तो कोई भी कर लेगा॥ आपकी इस अबधारना को ग़लत साबित करने के लिए आज मैं आपको सीईओ द्वारा सहे और किए जाने वाले असहनीय कार्यों के बारे में बताऊंगा॥

सीईओ एक ऐसा ओहदा है जिसका भारीपन आपको कभी भी चैन से नही बैठने देता॥ बेचारा सीईओ खुद कि भारी तनख्वाह को सही साबित करने के चक्कर में रात हो या दिन ईमेल, समस और फ़ोन करता और झेलता रहता है॥ ऊपर से यह सब करने के कारन जो उसकी अपने घर पर जो रोज जूता पै मार होती है उसका दर्द बेचारा किसी को नही बता पाता॥

हम सब तो अपनी तनख्वाह परफॉर्मेंस अप्प्रैसल के टाइम लड़ झगड़ के बढ़वा ही लेते है परन्तु बेचारा सीईओ..वोह किससे लड़े अपनी तनख्वाह को लेके..उसके पास तो बस एक ही तरीका होता है कि कंपनी बोर्ड को हर बुरी बात भी अच्छी करके बताओ..किसका दिल गवाही देगा ऐसा झूठ बोलने को। उदहारण स्वरुप अगर किसी को निकला या कोई खुद निकल गया उसको कोस्ट सेविंग कि तरह दिखाना। या फिर टीम कि अचिएवेमेंट को अपनी लीडरशिप क्वाल्तीस कि तरह दिखाना.. मैं समझ सकता हूँ कितना दर्द होता होगा सीईओ को ऐसे झूठ बोलते हुए॥ ऊपर से कई बार तो ऐसा भी होता है की तनख्वाह बढ़ने की जगह पर्क्स और बोनस बड़ा दिया जाता है, बताइए कहाँ का इन्साफ है॥

हर छोटा बड़ा एम्प्लोयी सीईओ को अपने घरेलु फंक्शन्स में बुलाना अपनी शान समझता है और बेचारा सीईओ न चाहते हुए भी सपरिवार पहुँचता भी है इन फंक्शन्स में॥ ठीक है अब गिफ्ट और पेट्रोल का पैसा तो कंपनी के एम्प्लोयी वेलफेयर फंड से ले लेगा बेचारा सीईओ लेकिन ..टाइम कि भी तो कीमत होती है न॥

टाइम कि कीमत से याद आया अब पार्टी में अगर मन करे कि जल्दी से ४-५ पैग चडा लो पर नही एक कि पैग में पुरी रात काटनी पड़ती है धीरे धीरे सिप करते हुए और हर आए गवाहे से बात करते हुए॥ अब जिसने पार्टी पर बुलाया है वोह तो इस बेचारे को सबसे मिलवा के ही छोडेगा न॥

रोज रोज पाँच सितारा होटल में रहना और खाना किसको अच्छा लगता है..लेकिन इस बेचारे कि किस्स्मत देखिये इसको तो वही रहना और खाना पड़ेगा..कंपनी कि इज्ज़त का सवाल जो है॥ इसी तरह हर साल आपको कार, घर, लैपटॉप और फ़ोन बदलने के लिए विबश किया जाए तो आपको कैसा लगेगा॥

सीईओ को न चाहते हुए भी चमचे पालने पड़ते है जिससे कि उसको कंपनी में हो रही गातविधियों के बारे में पता चलता रहे॥ आखिर कंपनी में हो रही हर छोटी बड़ी बात जानने का उसको हक है न ॥ तरस खाईये बेचारे पर ..क्या आप इनती सारी छोटी छोटी बातों को कभी सुन और पचा पायंगे॥

एक आम नागरिक कि तरह घर का बिजली पानी का बिल या बच्चों कि फीस खुद जा के भरने का मन करे भी तो यह चमचे करने नही देते, सोचने से पहले ही काम निपटा आते है॥ कितनी कोफ्त होती होगी न सीईओ को कि वोह अपने बच्चों को जीवन कि इन छोटी छोटी चीज़ों से अवगत नही करा पा रहा॥

बेचारे का खुद काम करने का कभी मन करे तब भी यह दिन भर कि बाहियात मीटिंग्स कुछ करने ही नही देती॥ अब ११ - ५ बजे के ऑफिस में आप सिर्फ़ मीटिंग्स ही करते रहे वोह भी हाई-टी, लंच या काफ़ी पर, बोरियत तो होगी ही न ॥

हर रोज़ दिन के अंत में सीईओ येही हिसाब करता होगा आज कितना झूठ बोला, कितनी इधर कि उधर करायी, कितना वक्त बरबाद किया मीटिंग्स में आदि॥ अब बताईये क्या अब भी आप इस पोस्ट के लिए लालायित है?